यह सूरह 'अलिफ़, लाम, मीम' है। यह ईश्वरीय ग्रंथ है, इसके ईश्वरीय ग्रंथ होने में कोई संदेह नहीं। मार्गदर्शन है इन परमेश्वर से डरने वालों के लिए जो बिन देखे मान रहे हैं और नमाज़ की स्थापना कर रहे हैं और जो कुछ हमने इन्हें दिया है, उसमें से (हमारे मार्ग में) दान कर रहे हैं। और जो उसे भी मान रहे हैं जो तुम्हारी ओर उतारा गया और उसे भी जो तुम से पूर्व उतारा गया और वे परलोक पर विश्वास रखते हैं। यही अपने प्रभु के मार्ग पर हैं और यही हैं जो सफलता पाने वाले हैं। (1-5)
परमेश्वर
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आभार परमेश्वर ही के लिए है, समस्त लोकों का प्रभु, सर्वथा दया, जिसकी कृपा शाश्वत है, जो न्याय के दिन का स्वामी है। (1-3)