यह सूरह 'अलिफ़, लाम, मीम' है। यह ईश्वरीय ग्रंथ है, इसके ईश्वरीय ग्रंथ होने में कोई संदेह नहीं। मार्गदर्शन है इन परमेश्वर से डरने वालों के लिए जो बिन देखे मान रहे हैं और नमाज़ की स्थापना कर रहे हैं और जो कुछ हमने इन्हें दिया है, उसमें से (हमारे मार्ग में) दान कर रहे हैं। और जो उसे भी मान रहे हैं जो तुम्हारी ओर उतारा गया और उसे भी जो तुम से पूर्व उतारा गया और वे परलोक पर विश्वास रखते हैं। यही अपने प्रभु के मार्ग पर हैं और यही हैं जो सफलता पाने वाले हैं। (1-5)
जावेद अहमद गामिदी
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आभार परमेश्वर ही के लिए है, समस्त लोकों का प्रभु, सर्वथा दया, जिसकी कृपा शाश्वत है, जो न्याय के दिन का स्वामी है। (1-3)
(जावेद अहमद गामिदी की पुस्तक ‘मीज़ान’ का एक अंश) अनुवाद तथा टीका: मुश्फ़िक़ सुल्तान शैली की विशिष्टता तीसरी चीज़ यह है कि क़ुरआन की भाषा शैली अनोखी है। इसमें गद्य (prose) की सरलता और क्रमबद्धता है, अपितु इसे गद्य नहीं कहा जा सकता। यह काव्य की लय, ताल और संतुलन […]
(जावेद अहमद गामिदी की पुस्तक ‘मीज़ान’ का एक अंश) अनुवाद तथा टीका: मुश्फ़िक़ सुल्तान भाषा की स्पष्टता दूसरी चीज़ यह है कि क़ुरआन केवल अरबी ही में नहीं, अपितु स्पष्ट अरबी में उतरा है। अर्थात एक ऐसी भाषा में जो अत्यन्त स्पष्ट है, जिसमें कोई अनिश्चितता नहीं है, जिसका प्रत्येक […]